प्रजातंत्र पर कहीं गई एक खूबसूरत कविता :-
प्रजातंत्र का अर्थ नहीं
जो मन आये कर ले हम ,
प्रजातंत्र का अर्थ नहीं
बस अपना घर भर ले हम,
एक समय आता अर्जुन से
अस्त्र छुट जाते हैं ,
प्रबल वेग से बहें बाढ़ तो
बाँध टूट जाते हैं ,
सत्ता के मद में जब भी
जिसने विवेक खोया हैं,
साक्षी है इतिहास सिकंदर
बिलख - बिलख रोया हैं !
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प्रजातंत्र का अर्थ नहीं
जो मन आये कर ले हम ,
प्रजातंत्र का अर्थ नहीं
बस अपना घर भर ले हम,
एक समय आता अर्जुन से
अस्त्र छुट जाते हैं ,
प्रबल वेग से बहें बाढ़ तो
बाँध टूट जाते हैं ,
सत्ता के मद में जब भी
जिसने विवेक खोया हैं,
साक्षी है इतिहास सिकंदर
बिलख - बिलख रोया हैं !
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