मध्य प्रदेश में वर्षा
➤मध्यप्रदेश में अधिकांश वर्षा जून से सितंबर के मध्य दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है जबकि चक्रवात से दिसंबर व जनवरी में कुछ वर्षा होती है ।
➤मध्यप्रदेश में दक्षिण पश्चिम मानसून से होने वाली वर्षा का मुख्य कारण कर्क रेखा का मध्य प्रदेश के मध्य से गुजर ना है।
➤21 जून को सूर्य कर्क रेखा के निकट लंबवत होता है जिससे तापमान में वृद्धि के कारण मध्यप्रदेश में हिंद महासागर की तुलना में कम वायुदाब का क्षेत्र निर्मित होता है इसी कारण समुद्री हवाएं स्थल की ओर आने लगती है तथा मध्य प्रदेश में इन मानसूनी हवाओं के कारण वर्षा होती है ।
➤मध्यप्रदेश में मानसूनी वर्षा अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों से होती है ।
➤दक्षिण पश्चिम मानसून से 75 से 125 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है जिसे अरब सागर का मानसून भी कहते हैं ।
➤बंगाल की खाड़ी के मानसून से 15 से 20% वर्षा होती है ।
➤21 सितंबर के बाद सूर्य दक्षिणायन होने के कारण हिंद महासागर में कम वायुदाब का क्षेत्र स्थापित हो जाने के कारण हवाएं स्थल से समुद्र की ओर चलने लगती है अतः सितंबर के बाद मध्यप्रदेश में छुटपुट वर्षा के अलावा शुष्क मानसून पाया जाता है ।
➤मध्यप्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा में स्थानीय भिन्नताएं अधिक है ।
➤प्रदेश के पश्चिमी भाग में 75 सेंटीमीटर से कम जबकि दक्षिणी व पूर्वी भाग में 75 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है ।
➤मध्य प्रदेश की औसत वर्षा 112 सेंटीमीटर है ।
➤ मध्य प्रदेश में 127 सेंटीमीटर सम वर्षा रेखा शिवपुरी , जबलपुर और रीवा से होकर जाती है।
➤मध्यप्रदेश में सर्वाधिक वर्षा पंचमढ़ी 180 से 200 सेंटीमीटर होते हैं ।
➤मध्य प्रदेश में न्यूनतम वर्षा भिंड का रोन 55 सेंटीमीटर होती है ।
➤मध्यप्रदेश में असमान वर्षा के कारण मध्य प्रदेश को अकाल की पेटी कहा जाता है ।
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