बदलता समाज और मोबाइल का दुरुपयोग




आज की बात है मैं अपने अंकल के घर गया और उनके साथ समय बिताया । अखबार पढ़ते पढ़ते अयोध्या विवाद पर हमारी चर्चा होने लगी और यह चर्चा चलते-चलते सोशल मीडिया तक पहुंची उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने विचार और अनुभव हमारे सामने रखें | उनके सुनने वालों में - मैं , बड़ी बहन, और दो छोटे भाई बहन थे | उनके शुरुआती शब्दों को सुनकर लगा जैसे  इस सोशल मीडिया की गाज हम पर ही गिरेगी उन्होंने कुछ इस तरह शुरू किया और बोले सोशल मीडिया का स्तर काफी व्यापक हो चुका है और उसने देश में कई आयाम खड़े किए किंतु हम ग्रामीणों के लिए यह एक घातक यंत्र साबित हुआ | दरअसल उनका कहना था कि हम अनपढ़ लोग मोबाइल का उचित उपयोग नहीं कर पाते हैं हमारे लिए मोबाइल एक संचार और ज्ञान का माध्यम ना होकर केवल एक टाइम पास है उन्होंने कहा एक पढ़ने वाला विद्यार्थी जो  स्कूल या कॉलेज में अध्ययनरत है वास्तविक में उसे मोबाइल फोन की जरूरत नहीं और तब तो बिल्कुल नहीं जब वह अपनी पढ़ाई अपने परिवार के साथ रहकर कर रहा हो | उन्होंने अपनी बात को अतीत में मोड़ा और अपनी आपबीती बताई उन्होंने कहा जब हम पढ़ते थे और पढ़ाई पूरी हो जाती तो हम बुजुर्गों के साथ अपना समय व्यतीत करते थे और उनके साथ बैठने पर हमें उच्च स्तर का ज्ञान प्राप्त होता था किंतु उन्होंने हमें दर्शाते हुए यह भी बताया कि क्या तुम ऐसा करते हो क्या कभी आप अपने बुजुर्गों के साथ बैठकर ज्ञान लेते हो या कभी किसी रिश्तेदार के यहां जाने पर उससे बातें करते हो तब हमारा उत्तर था नहीं , क्योंकि हम वास्तविक में ऐसा  बिल्कुल नहीं करते बल्कि फ्री समय में अपना मोबाइल फोन निकालकर उस पर अपना कीमती  समय व्यर्थ करते हैं | उन्होंने किसी संत को संबोधित करते हुए इस बात को हमें और अच्छे से समझाया था | उन्होंने हमें बताई  90 के दशक की बात जिनमें उन्होंने संचार के साधनों का उल्लेख किया उन्होंने अब जो बात बताई  वह बहुत ही रोचक और अद्भुत थी उन्होंने कहा बच्चों जब हम छोटे थे उस समय हमारे मनोरंजन का एकमात्र साधन और समय निश्चित था उन्होंने बताया जब पूरे गांव में केवल एक घर पर टेलीविजन थी और गांव के सभी लोगों का मनोरंजन का साधन वही था जिसका समय भी निश्चित था सुबह 8:00 बजे | जिसके लिए वह अपने सारे काम छोड़कर केवल टेलीविजन पर प्रसारित होने वाला प्रोग्राम रामायण देखने जाते थे और यह देखने के लिए बच्चे अपना खेल, किसान अपनी खेती, और औरतें अपना चूल्हा  छोड़ कर उस प्रसारण को देखते थे वह भी बड़ी उत्सुकता के साथ | इसमें रोचक बात यह थी कि गांव के यह सभी बच्चे बूढ़े एक ही स्थान पर और एक ही टेलीविजन पर यह प्रोग्राम देखते थे | जब टेलीविजन एक और दर्शकों की संख्या 200- 300 हो और बहुत अच्छी बात यह कि इन 200 -300 में बच्चे और बूढ़े ,औरतें और पुरुष साथ शामिल होते थे | 
 मैं यह सब बातें सुनकर काफी रोमांचित हो उठा और आश्चर्य से भर गया मुझे आज अंकल की बातें सुनकर और उनके द्वारा कराए गए इतिहास का आभास और हमारे समाज में बदलाव ने आज के दिन को यादगार साबित किया और मेरे जीवन में भी परिवर्तन का काम किया | मेरे अंकल जी को मेरी ओर से दिल से धन्यवाद।


SPECIAL THANKS FROM #ANAND PANCHAL

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