जियो और जीने दो➠
वर्तमान समय में चीन को इस सिद्धांत की अति आवश्यकता है ।
पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन अशांति में जीने के लिए कल्पित नहीं हुआ है बल्कि उसे समरसता की दिशा में ले जाने की भावना से सृजित है । यही मूल लक्ष्य है जो जियो और जीने दो की महान प्रेरणा बनकर आज हमारे लोकतंत्र को पुष्ट और शक्तिशाली बनाता है यही हमारे कर्मों का संकेतक और उत्प्रेरक है अन्यथा कर्म की समस्त दिशाएं सत्य प्रेरणा के अभाव में खो जाएगी उग्रवाद ,आतंकवाद ,क्रूरता ,स्वार्थपरकता ,भोगवाद ,हिंसावाद ,अलगाववाद ,उपभोक्तावाद और कट्टरपंथ से ग्रस्त वर्तमान विश्व को इस सत्प्रेरणा की बहुत आवश्यकता है ।
दकियानूसी विचारधारा ,असहिष्णु, सांप्रदायिक ,रूढ़िबद्ध और संकीर्ण हो चली मानव आत्मा को जीवन के विराट तत्व का दिग्दर्शन कराने के लिए जीव और अजीव के बीच अंतनिर्हित संबंध को उद्घाटित करना अत्यंत आवश्यक है । समाज में लेनदेन का व्यापार जितना ही स्थूल और प्रकट है उतना ही प्रकृति से लेनदेन का व्यवहार प्रच्छन्न और ओझल है । प्रकृति से जो हम ग्रहण कर रहे हैं वह हमें सामान्य तौर पर दिखाई नहीं देता इसलिए हम उसकी सुरक्षा के प्रति सचेष्ट नहीं रहते इसे गहराई से समझना होगा और नैतिक शिक्षा के माध्यम से मनुष्य और प्रकृति के सह-संबंध को सभी के मन में भली प्रकार से बिठाना होगा तभी विश्व शांति संभव है ।
वर्तमान समय में चीन को इस सिद्धांत की अति आवश्यकता है ।
पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन अशांति में जीने के लिए कल्पित नहीं हुआ है बल्कि उसे समरसता की दिशा में ले जाने की भावना से सृजित है । यही मूल लक्ष्य है जो जियो और जीने दो की महान प्रेरणा बनकर आज हमारे लोकतंत्र को पुष्ट और शक्तिशाली बनाता है यही हमारे कर्मों का संकेतक और उत्प्रेरक है अन्यथा कर्म की समस्त दिशाएं सत्य प्रेरणा के अभाव में खो जाएगी उग्रवाद ,आतंकवाद ,क्रूरता ,स्वार्थपरकता ,भोगवाद ,हिंसावाद ,अलगाववाद ,उपभोक्तावाद और कट्टरपंथ से ग्रस्त वर्तमान विश्व को इस सत्प्रेरणा की बहुत आवश्यकता है ।
दकियानूसी विचारधारा ,असहिष्णु, सांप्रदायिक ,रूढ़िबद्ध और संकीर्ण हो चली मानव आत्मा को जीवन के विराट तत्व का दिग्दर्शन कराने के लिए जीव और अजीव के बीच अंतनिर्हित संबंध को उद्घाटित करना अत्यंत आवश्यक है । समाज में लेनदेन का व्यापार जितना ही स्थूल और प्रकट है उतना ही प्रकृति से लेनदेन का व्यवहार प्रच्छन्न और ओझल है । प्रकृति से जो हम ग्रहण कर रहे हैं वह हमें सामान्य तौर पर दिखाई नहीं देता इसलिए हम उसकी सुरक्षा के प्रति सचेष्ट नहीं रहते इसे गहराई से समझना होगा और नैतिक शिक्षा के माध्यम से मनुष्य और प्रकृति के सह-संबंध को सभी के मन में भली प्रकार से बिठाना होगा तभी विश्व शांति संभव है ।
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