याद करें जलियावाला बाग़ वाला वो काला दिन । case study.

जलियावाला बाग हत्याकांड 

13 अप्रैल 1919 का वह दिन जो हर भारतीय के लिए काले दिन के रूप में साबित हुआ ।
जलियांवाला बाग नरसंहार को अंग्रेजी राज की क्रूरता व अंग्रेजी राज के दमन का प्रारंभ माना जाता है यही वह दिन था जब से भारत में अंग्रेजों का दमन प्रारंभ हो गया ।इतिहासकारों का कहना है कि इस घटना के बाद भारत पर शासन करने के लिए अंग्रेजों के नैतिक दावे का अंत हो गया ।


जलियांवाला बाग हत्याकांड के दिन की पूरी कहानी➤
संपूर्ण भारत में वैशाखी को एक त्योहार के रूप में आयोजित किया जाता है हालांकि हरियाणा और पंजाब के क्षेत्र में बैसाखी का एक विशेष आयोजन किया जाता है । भारत के पंजाब प्रांत में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निकट  13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए  जलियांवाला बाग नामक स्थान पर लगभग 25 से 30 हज़ार लोग जमा हुए थे । हालांकि इससे पूर्व हुए  1857 में विद्रोह तथा 1870 का कुका आंदोलन और साथ ही 1914 -15 का गदर आंदोलन के विरोध में अमृतसर में एक सभा का आयोजन होना था । तभी पंजाब प्रांत के ब्रिटिश प्रमुख जनरल डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के जलियांवाला बाग में मौजूद 25 से 30 हज़ार  लोगों पर गोलियां चलवा दी और वहां से भागने के सारे रास्ते बंद कर दिए । कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए पास के अंधे कुए में कूद पड़े जिसमे कई लोगो की मोत दम घुटने से हो गयी   इस पूरे नरसंहार में करीबन 400 से अधिक व्यक्ति मारे गए तथा अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 1000 , तथा 2000 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए । इस पूरे नरसंहार में केवल पांच ही अंग्रेज अधिकारी मौत के हवाले हुए ।

क्यों हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड➤

9 अप्रैल को रामनवमी के दिन पंजाब व हरियाणा में वहां के स्थानीय जनता द्वारा एक मार्च निकाला गया इस मार्च में हिंदू तो थे ही तथा बहुतायत संख्या में मुस्लिम भी शामिल हुए मुस्लिमों ने तुर्की सैनिको जैसे लिबास पहने हुए थे यह सब देख कर भारतीय नेता तो बहुत खुश थे किंतु जनरल डायर और उनके प्रशासन को अधिक चिंता हिंदू मुस्लिम की एकता देखकर हुई । तथा कुछ अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों द्वारा यह भी कहा जाता है कि जनरल डायर एक सनकी व क्रूर शासक भी था तथा वह अपने गुस्से पर काबू नहीं पा सका और उसने इस क्रूरता को अंजाम दिया ।

गाँधी की भूमिका ➤
रोलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन भारत का पहला अखिल भारतीय आंदोलन था और इसी आंदोलन में महात्मा गांधी की भी एक अहम भूमिका थी जलियांवाला बाग में गठित होने वाली सभा में महात्मा गांधी भी पहुंचने वाले थे किंतु उससे पूर्व ही 9 अप्रैल को महात्मा गांधी व दो अन्य नेता को गिरफ्तार कर लिया गया तथा पंजाब प्रांत में कांग्रेस भी मजबूत नहीं थी तो गांधी जी को कुछ दिन गिरफ्तारी में ही रहना पड़ा ।
जनरल डायर की इस क्रूरता में घायल लोगों को उपचार भी नसीब नहीं हुआ ।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला➤
जलियांवाला बाग में यह हत्याकांड हुआ तब शहीद-ए-आजम उधम सिंह वहीं पर मौजूद थे उन्होंने अपनी आंखों से इस पूरे नरसंहार को देखा और उसी वक्त प्रण लिया की वे इसका बदला अवश्य लेंगे 
उधम सिंह ने कुछ वर्षों तक भारत में कारीगरी का काम किया तथा कुछ समय बाद वह लंदन चले गए उन्होंने वहां जाकर एक होटल में काम किया तथा कुछ पैसे जमा करके एक पिस्तौल खरीदी । 13 मार्च 1940 को लंदन के केकस्टन हॉल में जनरल डायर एक सभा का आयोजन कर रहे थे उसी समय उधम सिंह ने अपनी पिस्तौल से जनरल डायर को तीन गोलियां दाग दी जिसमें जनरल डायर की मौके पर ही मौत हो गई हालांकि 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फांसी दे दी गई । 
आज पूरा देश इन्हें शहीद-ए-आजम उधम सिंह के नाम से जानता है ।

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