केवल तभी देखें जब आप हिंदू या मुस्लिम से ऊपर हैं | A MASSAGE FOR HINDU-MUSLIM UNITY

 इस पोस्ट को तभी पढ़े जब आप हिन्दू मुस्लिम की भावना से ऊपर हिंदुस्तान के बारे में सोंच रखते हो 


( NOTE :-  यह एक कविता है जो  MOHAMMAD MUBASHSHIR द्वारा लिखी गई है | )

मैं मुसलमान तो मुझ पर इल्जाम, तुम हिंदू तो तुम्हारा हिंदुस्तान
मैं मुसलमान तो मुझ पर इल्जाम, तुम हिंदू तो तुम्हारा हिंदुस्तान |
क्या यह सोच इसलिए है है, तो इसे दफना दो
क्योंकि मैं भी हिंदुस्तानी हूं भाई और मुझे हिंदुस्तानी कहकर बुला दो
मेरे सर की टोपी, दाढ़ी महज मेरे मजहब की निशानी है
पर वतन तो वही है जहां से मेरी पुस्ते रहती है
हिं से हिंदू हिंदू से हिंदुस्तान, हिंदुस्तान में बसा में एक मुसलमान जो चाहता है मुल्क को और तुम्हें समझाना भी की आजादी की चिंगारी मैं मेरे कुछ अपने भी जले थे
खानदानों और रियासतों को पीछे रखकर मेरे कुछ अपने भी लड़े थे |
कुछ गोलियों से छलनी हुए थे कुछ तलवारों से कट गए थे
कुछ इस मिट्टी में मिलकर इस मिट्टी के हुए थे, कुछ यूं ही फना हुए थे तो........ जितना मुल्क तुम्हारा है तो उतना वतन मेरा भी है
मैं नाम से मुसलमान हूं पर मेरी जड़े हिंदुस्तानी ही है और 70 साल हो गए आजादी के, फिर भी क्यों खैद बैठे हो...... मेरा नाम सुनते हो तो मुझे मुसलमान क्यों कहते हो,
मेरी पहचान मेरे मजहब से नहीं मेरे मुल्क से किया करते हैं, तुमसे बेहतर है वह गोरे जो मुझे हिंदुस्तानी कहा करते हैं | 
माना कि मुझे राष्ट्रगान नहीं आता माना कि मैं  वंदे मातरम नहीं बोलना चाहता तो, क्या मैं अकेला हूं या तुम में से भी कुछ शामिल है, जिनकी जुबां पर अभी जन गण मन सजा नहीं है वंदे मातरम रटा नहीं है और अगर है तो तुम मुझ पर ही क्यों एक इल्जाम लगा देते हो कभी विरोधी, राष्ट्रवादी, कभी मुल्ला कभी गैर मुल्की कहकर मुझे बुला लेते हो |
और अगर यह सब सुनने के बाद भी तुम मुझे मुसलमानों वाली फेहरिस्त में रखना चाहते हो तो सुन लो दोस्त तुम कोई छोटी सोच वाले मजहब फरस्त लगते हो |
बस इतनी तो इल्तजा है मेरी कि मेरी यह बात सुन ली जाए कि मैं सच में हिंदुस्तानी हूं और मुझे हिंदुस्तानी कहकर बुलाया जाए|
दोस्त तुम्हें लगता है कि मुझ में से कुछ आतंकवादी भी थे पर बताओ जिन्होंने बाबरी गिराई वह सारे हिंदुस्तानी थे, अल्लाह और राम के नारों के पीछे कोई मजहब दुरुस्त नहीं होता और 50 लोग मिलकर एक आदमी को मार दे तो उससे कुछ हासिल नहीं होता |
बात यह नहीं कि तुम सही या मैं गलत बात यह है कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, कोई अपना कोई पराया नहीं होता, आतंकवाद का मतलब सिर्फ आतंकवाद होता है कोई हिंदू ना कोई मुसलमान सिर्फ आतंकवादी ही आतंकवादी होता है |
और अगर सच में हिंदुस्तान को बढ़ाना चाहते हो तो चलो मुल्क को  बढ़ाते हैं गरीबी से मर रहे हैं लोग, चलो कुछ मदद कर आते हैं |
अगर मुसलमान हो तो जरका हजरत का फितरा करते रहना, हिंदू हो तो पुण्य भी कर देना..... क्या पता कल यह वजह बन जाए कि हिंदुस्तान से हिंदू - मुसलमान कम और हिंदुस्तानियों की आबादी ज्यादा हो जाए
और यह एक अपील हे जो मैं मुसलमानों से करना चाहता हूं कि यार यह जो मजहब, परस्ती और और कट्टरपंथी  के झंडे जो तुम लिए घूम रहे हो यह साइड रख दो.... छोटी मोटी बातों पर फतवे लगाना या  जहर फैलाना इन सब को खत्म कर दो |
अगर सच्चे मुसलमान हो तो चलो इंसानियत फैलाते हैं मोहब्बत के लोग भूखे हैं चलो मोहब्बत दे आते हैं
अगर किसी से लड़े बैठे हो तो सुलह कर लेना....
जुबानों को शहद और दिलों को साफ कर लेना....
हिंदू को हिंदू नहीं इंसान समझो, मुसलमानो हिंदुस्तान में रहते हो तो तुम्हें खुदा का वास्ता तुम हिंदुस्तान को अपनी जान समझो.......
और अगर इस सारे कहे में कहीं भी मैंने कुछ ऐसा कहा हो जो कहीं तुम्हारे दिल में चुभा हो तो मुझे माफ़ करना, पर अगर कुछ ऐसा भी कहा हो जो तुम्हारे दिल में उतरा हो तो इसे सरे आम करना  | 

FT.BY :- MOHAMMAD MUBASHSHIR












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