कहाँ हाँ करें और कहाँ करें "ना" यह आप पर निर्भर करता है | ( पढिये विस्तार से ) :-
कभी आपने किसी शॉपकीपर से सामान लेने के बाद उसे सामान फिर से लौटाया है।
या फिर कभी आपने किसी कोचिंग क्लास में डेमो लेने के बाद उस क्लास को ज्वाइन ना करने के लिए उस कोचिंग के हेड से बात की है?
या फिर किसी सेलर से उसके प्रोडक्ट की पूरी जानकारी लेने के बाद प्रोडक्ट को खरीदने के लिए आये उस सेलर के फ़ोन कॉल को बार बार अवॉयड किया है?
मेने तो ये सब किया है और भी ऐसे कई मौके आये जब किसी चीज को देख कर उसकी सारी जानकारी तो ली पर ख़रीदा नही या ख़रीदा भी हो तो वो मज़बूरी मे।
एक बार की बात है जब मैं एक बुक लेने बाजार गयी उस किताब का मूल्य 370रूपये मुझे बताया गया ,और उस पुस्तक को मेने नही ख़रीदा क्योंकि मुझे एक जगह पता थी जहाँ वही पुस्तक 320रूपये में मिल रही थी।
अगले दिन जब में उस दुकान का पता ढूंढते ढूंढते एक दूसरी दुकान पर पहुंची तो मेने उसी पुस्तक को 390 रूपये में ख़रीदा....ना तो मेरा मन था उस पुस्तक को खरीदने का और ना ही
मुझे मेरे पैसे ख़तम करने का शोक चढ़ा था।
पर बात कुछ यूँ थी की मेने उस दुकानदार से उस पुस्तक की सारी जानकारी लेली थी और जब मैने उसका मूल्य सुना तो मेरा मन किया बस चली जाऊ यहाँ से ,पर उस दुकानदार ने कहा मैडम ये बुक 490 की है पर में आपको 390 में दे रहा हु और अजीब नजरो से देखना लगा ठीक उसी तरह जैसे पड़ोसी अंकल को हम, हमारे घर से मुफ्त की चीनी या दूध ले जाते वक़्त देखते है
बस फिर क्या इस हड़बड़ाहट में मैने वो बुक खरीद ली ,थोड़ा बुरा लगा पर शाम तक सब नार्मल हो गया।
उस बात को में वही भूल गयी थी ।
कुछ महीनो बाद जब मैने अपनी पढ़ाई के लिए ऑनलाइन क्लास तलाशी तो मुझे एक क्लास ठीक लगी और मैने कुछ डेमो क्लासेज देखने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लिया पर डेमो देखने के बाद मेरा मन उठ गया उस क्लास से ,फिर क्या था जब उन क्लास वाले सर का कॉल आने लगा तो मेने 2 दिन अवॉयड किया पर तीसरे दिन माँ के कहने पर उनसे बात की में उनकी बातों को सुन रही थी और बेफालतू के क्लास के बारे में प्रश्न पूछे जा रही थी में अंदर ही अंदर कोशिश कर रही थी की मुझे मना करना है पर मुझसे हो ही नही पा रहा था। उसी वक़्त पापा ने फ़ोन मेरे हाथ से लिया और बड़े आराम से कॉल में कहा:- मेंम मेरी बालिका को आपकी क्लासेस अच्छी लगी। ये आपके लेक्चर को देखकर पढ तो लेगी पर आपके क्लासेस के विडियो में लिखने की फैसिलिटी जो आपने दी है उसकी जरूरत इसे नही है और इस कारण लेक्चर थोड़े ज्यादा लंबे हो गए है और क्लासेज इसी वजह से ये ज्वाइन नही कर पायेगी और थैंक्स बोल कर फ़ोन काट दिया ।
में यह सब सुनकर दंग रह गयी की जिस वजह से में इतनी परेशांन थी । वो सब पापा को करने में 1 मिनिट भी नही लगा।
अब उन मेंम का कॉल मेरे पास नही आया और एक बात भी समझ में आ गयी-
एक बुक जिसे मेने इस मज़बूरी में ख़रीदा की अगर नही ख़रीदा तो ये सब दुकानदार और आस पास खड़े लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
एक कोचिंग क्लास जो मुझे पसंद न आने पर भी उसे में इसलिए मना नही कर पाई की वो सामने वाला इंसान मेरे बारे में क्या सोचेगा और इस वजह से मैने मेरे समय ,धन और आगे वाले व्यक्ति का भी समय बर्बाद किया।
पर वास्तविकता में आप कुछ भी करलो सामने वाला वही सोचता है जो उसको सोचना होता है।
ये जो 'ना' बोलने की कला है ये हर इंसान में होना चाहिए ।इस कला से हम अपनी बात सहजता से कह पाते है और सामने वाले को बुरा भी नही लगता फिर चाहे वो जबर्दस्ती सामान देने वाला शॉपकीपर हो,पढ़ाई के वक़्त पार्टी में बुलाने वाले दोस्त हो या एग्जाम के टाइम शादी में बुलाने वाले रिश्तेदार......
ये जो 'ना 'बोलने की कला है बड़ी जबर्दस्त कठिन है पर अगर ये आ गयी तो सब सरल है।
#MANISHA
कभी आपने किसी शॉपकीपर से सामान लेने के बाद उसे सामान फिर से लौटाया है।
या फिर कभी आपने किसी कोचिंग क्लास में डेमो लेने के बाद उस क्लास को ज्वाइन ना करने के लिए उस कोचिंग के हेड से बात की है?
या फिर किसी सेलर से उसके प्रोडक्ट की पूरी जानकारी लेने के बाद प्रोडक्ट को खरीदने के लिए आये उस सेलर के फ़ोन कॉल को बार बार अवॉयड किया है?
मेने तो ये सब किया है और भी ऐसे कई मौके आये जब किसी चीज को देख कर उसकी सारी जानकारी तो ली पर ख़रीदा नही या ख़रीदा भी हो तो वो मज़बूरी मे।
एक बार की बात है जब मैं एक बुक लेने बाजार गयी उस किताब का मूल्य 370रूपये मुझे बताया गया ,और उस पुस्तक को मेने नही ख़रीदा क्योंकि मुझे एक जगह पता थी जहाँ वही पुस्तक 320रूपये में मिल रही थी।
अगले दिन जब में उस दुकान का पता ढूंढते ढूंढते एक दूसरी दुकान पर पहुंची तो मेने उसी पुस्तक को 390 रूपये में ख़रीदा....ना तो मेरा मन था उस पुस्तक को खरीदने का और ना ही
मुझे मेरे पैसे ख़तम करने का शोक चढ़ा था।
पर बात कुछ यूँ थी की मेने उस दुकानदार से उस पुस्तक की सारी जानकारी लेली थी और जब मैने उसका मूल्य सुना तो मेरा मन किया बस चली जाऊ यहाँ से ,पर उस दुकानदार ने कहा मैडम ये बुक 490 की है पर में आपको 390 में दे रहा हु और अजीब नजरो से देखना लगा ठीक उसी तरह जैसे पड़ोसी अंकल को हम, हमारे घर से मुफ्त की चीनी या दूध ले जाते वक़्त देखते है
बस फिर क्या इस हड़बड़ाहट में मैने वो बुक खरीद ली ,थोड़ा बुरा लगा पर शाम तक सब नार्मल हो गया।
उस बात को में वही भूल गयी थी ।
कुछ महीनो बाद जब मैने अपनी पढ़ाई के लिए ऑनलाइन क्लास तलाशी तो मुझे एक क्लास ठीक लगी और मैने कुछ डेमो क्लासेज देखने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लिया पर डेमो देखने के बाद मेरा मन उठ गया उस क्लास से ,फिर क्या था जब उन क्लास वाले सर का कॉल आने लगा तो मेने 2 दिन अवॉयड किया पर तीसरे दिन माँ के कहने पर उनसे बात की में उनकी बातों को सुन रही थी और बेफालतू के क्लास के बारे में प्रश्न पूछे जा रही थी में अंदर ही अंदर कोशिश कर रही थी की मुझे मना करना है पर मुझसे हो ही नही पा रहा था। उसी वक़्त पापा ने फ़ोन मेरे हाथ से लिया और बड़े आराम से कॉल में कहा:- मेंम मेरी बालिका को आपकी क्लासेस अच्छी लगी। ये आपके लेक्चर को देखकर पढ तो लेगी पर आपके क्लासेस के विडियो में लिखने की फैसिलिटी जो आपने दी है उसकी जरूरत इसे नही है और इस कारण लेक्चर थोड़े ज्यादा लंबे हो गए है और क्लासेज इसी वजह से ये ज्वाइन नही कर पायेगी और थैंक्स बोल कर फ़ोन काट दिया ।
में यह सब सुनकर दंग रह गयी की जिस वजह से में इतनी परेशांन थी । वो सब पापा को करने में 1 मिनिट भी नही लगा।
अब उन मेंम का कॉल मेरे पास नही आया और एक बात भी समझ में आ गयी-
एक बुक जिसे मेने इस मज़बूरी में ख़रीदा की अगर नही ख़रीदा तो ये सब दुकानदार और आस पास खड़े लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
एक कोचिंग क्लास जो मुझे पसंद न आने पर भी उसे में इसलिए मना नही कर पाई की वो सामने वाला इंसान मेरे बारे में क्या सोचेगा और इस वजह से मैने मेरे समय ,धन और आगे वाले व्यक्ति का भी समय बर्बाद किया।
पर वास्तविकता में आप कुछ भी करलो सामने वाला वही सोचता है जो उसको सोचना होता है।
ये जो 'ना' बोलने की कला है ये हर इंसान में होना चाहिए ।इस कला से हम अपनी बात सहजता से कह पाते है और सामने वाले को बुरा भी नही लगता फिर चाहे वो जबर्दस्ती सामान देने वाला शॉपकीपर हो,पढ़ाई के वक़्त पार्टी में बुलाने वाले दोस्त हो या एग्जाम के टाइम शादी में बुलाने वाले रिश्तेदार......
ये जो 'ना 'बोलने की कला है बड़ी जबर्दस्त कठिन है पर अगर ये आ गयी तो सब सरल है।
भटकिये मत | समझोता किजीयें | दुनिया होगी आपकी मुट्ठी में |
अधिकारी बनना लेकिन क्यों ? कीजिये अपने सवालों को दूर |
#MANISHA
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