अहिल्या बाई होल्कर । एक सामान्य परिचय ।

एक अबला? या वीरांगना!

ऐसी संतान जिस पर हर पिता को गर्व हो, एक ऐसी ही संतान अहिल्या बाई  ने 31 मई 1725 जामखेड मे मंकोजी शिंदे के घर जन्म लिया। बचपन से ही संस्कार तथा रूप की गठजोड़ जो एक ही झलक में किसी को भी मंत्रमुग्ध कर दे ऐसी अहिल्या को जब इंदौर के सुबेदार मल्हारराव ने देखा तो उसे अपनी बहु बनाने के लिए ललायीत हो गया। उसे अहिल्या बाई में अपने बिगड़े बेटे खण्डेराव का सुनहरा भविष्य दिखने लगा।



जल्दी ही उन दोनों का विवाह हुआ। अहिल्या बाई के गुणों को देखते हुए   मल्हार राव ने अपनी बहु को राजनीति और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने का निर्णय लिया। 
एक दिन की बात है जब बहु अहिल्या अपने पति और ससुर के साथ भ्रमण पर निकली हुई थी जो कि वो अक्सर जाया करती थी तब उन लोगों पर जानलेवा हमला हुआ जिसमें खण्डेराव को गोली लगीं और उन्होंने वही दम तोड़ दिया।
1766 में एक युद्ध में मल्हारराव की मृत्यु हो गई। अहिल्या इन दुःखों से उभर ही रही थी कि उसके पुत्र की पागलपन की वजह से मृत्यु हो गई। अहिल्या बाई पर तो जैसे दुःखों का पहाड़ ही टुट पड़ा, किन्तु अब उस पर राज्य को चलाने की जिम्मेदारी भी थी। अहिल्या ने साहस दिखाया, खुद को और राज्य को सम्भाला। वह बड़ी ही धर्म-परायण, न्याय-प्रिय और साहसी थी। वह अपने सुशाशन के कारण मराठा महारानी के रूप में प्रसिद्ध हुई।
बिना जंग लड़े जितना अहिल्या बाई की विशेष खुबी मानी जाती थी। एक बार की बात है जब राघो बा 5000 सैनिक लेकर इंदौर पर हमला करने क्षिप्रा के तट तक आ गया था, जब अहिल्या को इस बात की खबर मिली तो उन्होंने राघो बा को पत्र लिखा। जिसमें कहा गया कि अगर तुम जित भी जाते हो तो कोई बात नहीं मगर स्त्री से हार गए तो चारों ओर थू-थू होगी।
इस बात को सुनकर राघो बा मुड़ गया। जरूरत पड़ने पर महारानी ने चन्द्रवत राजाओं से लोहा लिया और उन्हें धुल चटाई।

अहिल्या बाई ने अपने कार्यकाल के समय अपनी राज्य की सीमओं के अन्दर तीर्थ स्थल , मंदिर , सड़के, सार्वजनिक भवन आदि का निर्माण करवाया 

अहिल्याबाई के प्रति विचारधारा 

अहिल्याबाई के सम्बन्ध में दो भिन्न  प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं। एक में उनको देवी का  अवतार माना  गया  है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अन्धविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है। वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा। अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला।

अत्यधिक राज्य की चिंता का भार तथा राजकीय असहयोग की पीड़ा को अहिल्याबाई सहन नहीं कर सकी तथा 13 अगस्त 1795 को उनकी आकस्मिक म्रत्यु हो गई 

ऐसी अद्भुत गुणों से सुसज्जित महारानी अहिल्या बाई तो एक वीरांगना ही हो सकती हैं।


धन्यवाद 

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