राष्ट्रीय आपदा राहत कोष
आपदा राहत कोष में 11 वे वित्त आयोग की सिफारिशों पर आधारित है। इसका इस्तेमाल चक्रवात, सुखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, बादल फटना, कीटो के आक्रमण से प्रभावित लोगों को तुरंत राहत दिलाने के लिए किया जाता है। यह राज्य के लोक खाते के अंतर्गत आता है जिसमें केंद्र तथा राज्य सरकारों का हिस्सा क्रमशः 75% एवं 25% का होता है । इस कोष को किसी राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन की राज्य स्तरीय समिति द्वारा प्रशासित किया जाता है । गृह मंत्रालय सभी प्राधिकृत आपदाओं की स्थिति में राहत कार्य पर नजर रखते हुए आपदा राहत कोष से सहायता प्राप्त करने के लिए दिशानिर्देश जारी करता है ।
राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष
इसे राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही कोष भी कहा जाता है इसकी मूल निधि 500 करोड रुपए हैं जिसे सिगरेट, पान मसाला, बीड़ी, तंबाकू पर अन्य उत्पाद और सेल्यूलर फोन पर लगे राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क के जरिए पूरा किया जाता है । इसे भारत सरकार के लोक खाते में रखा जाता है जिसे एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा प्रबंधित किया जाता है जिसमें कृषि, ग्रह, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष शामिल है। राष्ट्रीय आपदा कोष से प्राप्त सहायता केवल तात्कालिक राहत और पुनर्वास के लिए होती है तथा इसे परिस्थितियों के पुनर्निर्माण तथा क्षतिग्रस्त अवसंरचना के निर्माण के लिए नहीं दिया जाता है ।
प्रधानमंत्री राहत कोष
इस कोष की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1948 में की थी इसका उपयोग मुख्य रूप से बाढ़, चक्रवात, भूकंप और प्रमुख दुर्घटनाओं व दंगों से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है इसके अलावा इस कोष से हृदय,शल्य चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर के इलाज हेतु भी सहायता दी जाती है इसमें केवल जनता का अंशदान होता है इसके लिए कोई बजटीय प्रावधान नहीं होता है । कोष की धनराशि प्रधानमंत्री के अनुमोदन के बाद वितरित की जाती है ।
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