बाल मजदूरी एवं इससे जुड़े कानून
🌀बाल मजदूरी, यानी बच्चों के काम करने को बाल मजदूरी कहा जाता है, एक गंभीर सामाजिक समस्या है। यह एक अवैध और अनैतिक गतिविधि है जो बच्चों के अधिकारों को हानि पहुंचाती है और उनके विकास को रोकती है। भारतीय संविधान में, बाल मजदूरी को पूर्णतः प्रतिष्ठित किया गया है और इसे निषेध किया गया है। कुछ मुख्य और महत्वपूर्ण कानूनों के माध्यम से बाल मजदूरी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है।
🌀1. बाल श्रम (निषेध और नियंत्रण) अधिनियम, 1986: यह अधिनियम बाल मजदूरी को निषेधित करता है और बच्चों के लिए शिक्षा और विकास के अधिकार की सुरक्षा करता है। यह अधिनियम बाल मजदूरी की उम्र 14 वर्ष तक के लिए पूरी तरह से प्रतिष्ठित करता है और अधिकार की संरक्षा के लिए निर्धारित नियमों की पालना की मांग करता है।
🌀2. भारतीय संविधान: भारतीय संविधान बाल मजदूरी को पूर्णतः प्रतिष्ठित करता है और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करता है। अनुच्छेद 24 के अनुसार, न्यूनतम उम्र से पहले किसी भी व्यक्ति को किसी भी उद्योग, कारख़ाना, या मजदूरी में नियुक्ति नहीं की जा सकती है।
🌀3. अधिकार के बाल संरक्षण अधिनियम (जीवन की संरक्षा) 2015: इस अधिनियम के तहत, बच्चों को अपराधियों और उत्पादन से सुरक्षा प्रदान की जाती है। इसमें बाल मजदूरी के मामलों में दायित्वपूर्ण अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं और उन्हें विशेष सुरक्षा दी जाती है।
🌀4. भारतीय नगरिकता अधिनियम, 1955: यह अधिनियम बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करता है और उन्हें नगरिकता के अधिकारों की प्राप्ति का अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत, बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और बाल मजदूरी से मुक्ति के अधिकार होते हैं।
🌀ये कुछ मुख्य कानून हैं जिनके माध्यम से बाल मजदूरी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। इन कानूनों को प्रभावी ढंग से प्रवर्तित करने के लिए, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए। साथ ही, समाज को बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलानी चाहिए और संबंधित संस्थाओं को समर्थन प्रदान करना चाहिए जो बाल मजदूरी के विरुद्ध लड़ाई में सक्रिय हैं।